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Wednesday, December 23, 2015

राधा कृष्ण का दिव्य प्रेम




प्रेम के बिना सारा जग सूंना है राधा और कृष्ण का प्रेम  सर्वश्रेष्ठ प्रेम  माना जाता है ऐसा  नहीं है कि ऐसा प्रेम राधा ही कर सकी ऐसा प्रेम तो मीरा ने 
भी किया मगर ये  प्रेम उस समय का है  जब कृष्ण नहीं थे और राधाजी का   प्रेम स्वयं कृष्ण से साक्षात रूप से हुआ था यू तो प्रेम सूर नेकिया और तुलसी -दासजी ने भी श्री राम  से प्रेम किया ,हनुमान जी तो प्रेम  की  साकार मूर्ति 
थे मगर ये सभी एक भक्त के रूप में प्रेम करते थे मगर राधा ने प्रेमिका भाव   से प्रेम किया प्रेमिका भाव में एक अलग ही आनंद ,अलग सी मस्ती एक अल- ग सा खुमार  होता है  इसमें अपने  प्रेमी  को बराबरी के भाव से प्रेम किया जाता है  मगर दूसरी तरफ भक्ति भाव में बराबरी नहीं होती वह तो एक भ- क्त भगवान को अपने से ऊपर रखकर दास भाव से भक्ति करता है  इस प्रेम    के अंदर और भी अनेक भाव आते है  जैसे सखा भाव ,माता प्रेम भाव ,पिता प्रेमभाव ,मगर गोपी भाव और दिव्या प्रेमभाव और भी उच्चकोटि का माना जाता है हम किसी भी भाव से भगवन को प्रेम करे हमें सुफल की  ही प्राप्ति होती है  मगर राधा कृष्ण प्रेम में कुछ  अलग हटकर बात है राधा को  कृष्ण की  आलाहदिनी शक्ति कहा गया है ये प्रेम की पराकाष्ठा है मतलबजो भगवा    न आनंद सागर है जहा आनंद की कोई कमी नहीं वहा भगवानको और क्या चाहिए  मगर राधा प्रेम से तो प्रभु को आनंद से भी ज्यादा महा आनंद  की    प्राप्ति  होती   है इसी को आलाहदिनी शक्ति शब्द से सम्बोधित किया गया    है  इस शक्ति के माध्यम से स्वयं भगवान स्वतः ही ना चाहते हुए भी खिचे चले आते है अतः ये बात निश्चित हो गयी कि कृष्ण का नाम जपने के बजाय 
राधा नाम जपने से भगवान जल्दी प्रसन्न होते है इसलिए राधा नाम का स -हारा लेना  ज्यादा फायदेमंद है आपको राधा कृष्ण प्रेम की बचपन की कथा सुनाता हूँजब राधा और कृष्ण पहली बार मिले थे राधाजी के पिता वृषभान जी  अपने मित्र नंदबाबा से मिलने गोकुल आये तब राधाजी भी अपने पिता बृषभान जी के  साथ गोकुल आयी बताते है राधाजी उस समय इतनी काली और कुरूप थी कि उनके पिता कहते थे कि ये हमारे घर में कहा से विष  का कुला उत्पन्न हो गयी ये सुनके राधाजी मन ही मन घुटी रहती थी औरबहुत ही दुखी  होती थी नंदबाबा से बातचीत के प्रसंग में  यह भी सामने आ गया कि    
हमारे कुल में सभी गोरे है मगर पता नहीं ये कैसे काली पैदा हो गयी तब कृ-  ष्ण भी वही  खेल रहे थे और उनकी बाते भी सुन रहे थे तब कृष्ण ने  राधा - जी को अत्यंत दुखी  देखा  कृष्ण  ने राधाजी  की ओर  अपना हाथ बढाकर कहा चलो राधे हम दोनों  खेलते  है राधा जी ने  कुछ सकुचाते हुए  अपना हाथ कृष्ण  के हाथ में दे दिया  और दोनों खेलने लगे  खेलते ही  खेलते कृष्ण राधाजी को  जमुना  के तट पर ले गए और राधाजी  से बाते करने  लगे तब राधाजी ने अपने रूप के बारे में भी चर्चा की और कहा कि कृष्ण मेरे परिवार और समाज में कोई भी मुझे  इस रूप  की वजह से प्यार नहीं करता  कृष्ण बताओ  इसमें मेरी क्या गलती है तब कृष्ण ने कहा राधे तू चिंता मतकरआज के बाद में तुम्हे इतना सुन्दर बना दूँगा कि सभी तेरे रूप को देखकर तारीफे किया  करेंगे देख अब में क्या करता हूँ तभी कृष्ण ने अपनी मोहिनी शक्ति के माध्यम से  कुछ ऐसी क्रिया की कि राधाजी का सम्पूर्ण शरीर परिवर्तित हो गया और राधा अत्यंत गौरवर्णीय हो गयी और कृष्ण कुछ सावले से हो गए   तब यह सब देखकर राधाजी आश्चर्य चकित हो गयी कि श्याम ने अपना रंग मुझे दे दिया है क्योकि कृष्ण बहुत ही गोरे थे तबसे ही राधाजी श्याम से मन ही मन प्रेम करने लगी इस घटना के बाद से ही कृष्ण का एक नया नाम श्या   म पड़  गया जब राधाजी अपने पिता के पास वापिस पहुंची तो वृषभानजी राधाजी को नहीं पहचान सके तब  राधाजी ने अपने  पिता और  नन्द बाबा   को सारी बात बताई कि कृष्ण ने किस प्रकार से अपनी शक्ति के माध्यम  से मुझे इतना सुन्दर बना दिया ऐसे मित्र को पाकर राधा सदा -सदा के  लिए धन्य हो गयी और राधा ने भी  ऐसे प्रेम की नदिया बहाई कि आज भी राधा कृष्ण की दूसरी मिशाल देखने को नहीं मिलती |   शेष आगे -----

   आपका ---योगी चिन्तन 
  Email: hari.construction@yahoo.com

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