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Thursday, December 24, 2015

और भी मंजिल है प्यार की

                  

   प्रेम के पंख उन्ही  को लगते  है जिन्हे  ईश्वर  से प्रेम होता  है  प्रेम ईश्वर की तरफ से मानव को तोहफा है क्योकि इसे धन दौलत और किसी भी प्रकार से पाया  नहीं जा सकता ये  तो पूर्व जन्मो के कर्म से या फिर ईश्वर 

की कृपा से ही प्राप्त किया जा सकता  है फिर ईश्वर के द्वारा प्रदत्त प्रेम के कारण  ऐसी नियामत हासिल होती है  हमारे समाज में ऐसी अनेक कहानिया प्रचलित है जैसे हीर -राँझा, श्री -फरियाद ,लैला -मजनू इत्यादि 

कहते है एक समय लैला मजनू एक शरीरऔर एक जान थे जब मजनू की पिटाई होती थी तब निशान लैला के पड़ते थे अगर लैला दुखी होती थी तो मजनू को बड़ी  बेचैनी होती थी लोगोको जब ये पता चला तो वे बड़े आश्चर्य 

चकित हुये किसी ने उस समय के उच्चकोटि के फ़क़ीर से इसकी वजह पूछी तब फकीरने कहा इन दोनों का प्यार साधारण प्यार नहीं है यह तो दो सच्चे  खुदा से प्यार करने वाले दिलो का प्यार है  इसी दिव्य प्रेम की वजह 

से एक के चोट लगती है तब दर्द दूसरे को होता है और एक की ख़ुशी दुसरे को ख़ुशी देती है  जबकि वास्तविक जीवन में लैला राजपरिवा -र से थी और अमीर घराने से थी  और मजनू  साधारण परिवार से था और आवाराओ की 

तरह घूमताफिरता था मगर वह ईश्वर कहे खुद कहे दोनों एक ही बात है ,में लीन  रहता था रूखा सूखा था और फटे पुराने कपडे पहनता था मगर ईश्वरीय शक्ति  से प्रेम के सागर में आनंद की हिलोरे लेता था लैला भी 

मजनू के इस दिव्य प्रेम को समझती थी और अपना दिल मजनू को देकर वह भी उसी प्रेम में  खो  गयी  दोनों एक ही पथ के पथिक बन चुके थे जहा प्रेम  होता है वहा गम नहीं  होता क्योकि एक म्यान में दो तलवारे नहीं रह 

सकती मगर दुनियावालो  को ये सब बाते कहा समझ में आती है वे तो इसरिश्ते को शक की नजर से देख रहे थे परिणाम  स्वरूप मजनू को एक चौराहे पर घेरकर भीड़ ने सजा देने की ठान ली भीड़ में  से किसी  ने एक 

पत्थर मजनू  के ऊपर मारा पत्थर लगते  ही मजनू के माथे से खून बहने  लगा उधर लैला के  भी पर भी चोट महसूस हुई और माथे से खून बहने लगा राज महल में सभी परेशान हो गए  कि लैला के  यहाँ पत्थर किसने 

मारा क्योकि राज महल में पत्थर आने का   कोई रास्ता नहीं था मगर लैला सब कुछ भाप गई वह दौड़ती -दौड़ती चौ- राहे पर पहुंची और लोगो से कहने  लगी  इस  मासूम को किस बात की सजा दे रहे हो हो इसने तुम्हारा 

क्या बिगाड़ा है इसे  पत्थर क्यों माररहे हो तभी किसी ने एक पत्थर फिर मजनू के सर पर मार  दिया ये पत्थर सर पर लगा  सर में से तेज़ खून निकलने लगा तुरंत पल्लू से कपडा फाड़कर सर पर बांध दिया लैला ने 

कहा कि तुम अपने  आप को मर्द कहते हो तो पत्थर मुझे मारकर दिखाओ मगर इसको छोड़ दो मगर पब्लिक नहीं मानी तब लैला ने  अपने  खुदा को याद किया प्रेम के दिव्य प्रभाव से वे पत्थर फूल में परिवर्तित  हो गए 

पत्थरो को फूलो में बदलता देख जनता ने पत्थर फेकना बंद कर दिया तब लैला स्वयं पत्थरो को इकट्ठा करकर लोगो को देने लगी अब सभी लोग आश्चर्य से भर गए और शर्म से नजरे नीचे झुका ली तब लैला कहने लगी 

लोअब पत्थर उठाओ ज़माने के खुदाओं तुम मुझे आजमाओ मेँ तुम्हे आजमाऊ और वही पर बैठकर खुदा को याद करने लगी तभी एक रौशनी लैला के अंदर प्रवेश कर गयी यह सब  देखकर सभी भौच्चके रह गए वह 

उपस्थित लोगो की समझ में आ गया था कि ये तो सांसारिक  प्रेम ना होकर दिव्यप्रेम है उन्होंने इस कृत्य  के लिए माफ़ी मांगी और अपने घरो को वापिस चले गए बाद में इस कहानी का अंत भी  दुखद हुआ लैला मजनू  
एक दूसरे के साथ लिपटकर मृत्यु को प्राप्त हुए और अपने अमर प्रेम को प्राप्त करते हुए समाज को दिव्य प्रेम  का सन्देश दे गए ऐसा प्रेम सदियों में कभी कभी ही देखने को मिलता है बिना खुदा की इबादत और महर के ऐसा दिव्य प्रेम मिलना संभव ही नहीं है
 

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