हिमालय में ऊचे से ऊचे योगी की यही इच्छा रहती है कि जीवन में कोई ऐसा मिले जिससे मन की बात की जा सके अपना कार्य कराया जा सके और कुछ मनोरंजन प्राप्त किया जा सके क्योकि हिमालय की शांति में इतनी ज्यादा शांति होती है जिससे कभी कभी मन घबराने लगता है दूसरा तथ्य यह भी है कि साधना करते करते एक योगी का ह्रदय इतना कठोर हो जाता है की वह मुस्कराना भी भूल जाता है एक ही धुन सवार रहती है कि किस प्रकार से साधना सफलता प्राप्त की जाये और जब सफलता मिलती है तब प्रसन्नता भी होती है मगर जब स्वर्ण देहा अप्सरा के बारे में पता लगता है तो एक योगी भी अपने आप को नहीं रोक पाता क्योकि यह अप्सरा कितना भी कठोर योगी या यति हो उसके पूरे जीवन को प्रेम आपूरित कर पूरी मानसिकता ही बदल देती है तभी तो ऊचे से ऊचा योगी भी स्वर्ण अप्सरा साधना कर इस अप्सरा को जीवन साथी या प्रेमिका रूप में सिद्ध करने को व्याकुल हो जाता है इस अप्सरा को सिद्ध करना बहुत ही कठिन कार्य है क्योकि इसके लिए पूर्ण तेजस्विता की जरूरत होती है और गुरु के सानिध्य में रहकर ही सफलता प्राप्त की जा सकती है मुझे यह तथ्य हिमालय के उच्च कोटि के योगी से प्राप्त हुआ था जिन्होंने 21 बार साधना करने के बाद इस साधना में सफलता प्राप्त की थी जबकि इससे पहले की हुई साधना ज्यादातर पहली या दूसरी बार में ही प्राप्त कर लेते थे आप सोच सकते है यह कितनी दुरूह साधना होगी इस साधना को पाने के लिए उन्हें गन्धर्व पहाड़ पर 300 फीट उचाई से बहती नदी में छलांग लगानी पड़ी थी तब जाकर एक महात्मा से इस साधना प्रयोग को प्राप्त कर सके |
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