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Wednesday, April 19, 2017

समुद्र में छलांग लगाओ मोती मिलेंगे

  



जो अपने जीवन में सब कुछ दाव पर लगा देता है वह बहुत कुछ प्राप्त कर सकता है जो कुछ खोएगा नहीं तो वह कुछ प्राप्त भी नहीं कर सकता अगर कुछ पाना है तो बहुत कुछ खोना भी पड़ता है अपने जीवन को दाव 

पर लगाना पड़ता है अपने प्राणों को फ़ना करना पड़ता है अपने आपको न्यौछावर करना पड़ता है इसके बाद में एक शिष्य को जो कुछ मिलता है वह हजार-हजार गुलाबों से भी ज्यादा सुगंधित बना देता है वह अपने आप में  
तेजस्वी बन जाता है और मधुर बन जाता है इसलिए शिष्यता  की कसौटी बहुत कठिन है शिष्य बनने के लिए अपने आप को मिटाने की भावना होनी चाहिए सिर पर कफन बंधा होना चाहिए पांव में ताकत होनी चाहिए 

और जो जीवन में निश्चय कर लेना कर लेता है उस पगडंडी पर चलने की भावना मन में ले आता है तब  यह बहुत ही खतरनाक खेलबन जाता है जिस प्रकार से नंगी तलवार पर चलने से पैर लहूलुहान हो जाते हैं उसी 

प्रकार इस रास्ते पर चलने से बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जब गुरु आवाज देता है तो हर हाल में गुरु के पास पहुंचना पड़ता है शिष्य बनने की कसौटी आज्ञापालन है, आज्ञापालन की पगडंडी पर 

चलकर शिष्य बना जा सकता है अपने सिर को उतार कर जमीन पर रखने की और हथेली पर रखकर घूमने की जो कला जानते हैं वही शिष्य बन सकते हैं समर्पण करके ही शिष्य बना जा सकता है गुरु को इस बात से 

बहुत प्रसन्नता होती है जब गुरु देखता है कि मैंने इस शिष्य को परीक्षा दी और यह परीक्षा में खरा उतरा अब यह शिष्य हंस बन गया है इसके पंखा गए हैं इसने  उड़ने की कला सीख ली है अब यह आकाश में लंबी दूरी तक  
उड़ सकता है और इस भवसागर से पार जाने की शक्ति इसमें आ गई है तब गुरू को बड़ी प्रसन्नता होती है उसका सीना एक गज  से 10 गज का हो जाता है छाती फूल जाती है और उसकी आंखों में एक चमक आ जाती 

है और वह एहसास करता है कि मैंने एक शिष्य को तैयार किया है और उसका निर्माण किया है उसे विश्वास हो जाता है कि मैंने जो ज्ञान की चेतना जलाई है वह अब बुझेगी नहीं जो कुछ मैंने इस समाज को देना चाहिए 

वह  शिष्य के माध्यम से देसकूंगा  क्योंकि मैंने जीवित ग्रंथ लिखा है गुरु  पहली बार एहसास करता है कि मैंने कागज  पर कोई उपन्यास नहीं लिखा है मैंने एक जीवित जागृत शिष्य  तैयार किया है जिसमें चेतना है और 

पूरे समाज को जगाने की ताकत है वास्तव में अद्वितीय बनने की कला शिष्यता से ही शुरू होती है और शिष्यता पर ही खत्म हो जाती है शिष्य बनकर शिष्यता तक पहुंचना जीवन की 

श्रेष्ठता होती है वह वास्तव में ही धन्य हो जाता है आभायुक्त हो जाता है स्वर्णिम बन जाता है और हजार-हजार सौंदर्य उसके चेहरे पर खिल जाता 

है और जहां पुरुष के लिए यह बात लागू होती है शिष्याओं और साधिकाओं पर भी यह बात लागू होती है केवल हाथ जोड़ने से ,आंखें बंद कर देने से ,अगरबत्ती लगा देने से, कोई शिष्य नहीं बन सकता शिष्य बनने के लिए 

अत्यंत कठिन और कठोर कसौटी होती है क्योंकि एक तरफ समाज के बंधन उसके पांव में बेड़ियां बनकर खड़े होते हैं और दूसरी तरफ गुरु खड़ा होता है दोनों के बीच में निरंतर संघर्ष होता है आपने किधर जाने का निश्चय 

किया है यह आपकी सोच है मीरा ने कहा है सूली ऊपर सेज पिया की किस बिध मिलना होय मेरे पिया तो सूली के ऊपर हैं क्योंकि जितना सूली पर चढ़ने में दर्द और वेदना सहन करनी पड़ती है इस 

समाज ने भी मुझे उतनी ही वेदना दी  है जो मुझे सहन करनी पड़ती है और मैं इस वेदना को सहन करूंगी ही क्योंकि उस वेदना को सहन करने के बाद ही मुझे कृष्ण मिल सकेंगे उसे  अपने आप में अद्वितीय आनंद की 

अनुभूति होती है यही प्रेम की पराकाष्ठा है दुख की घाटी को पार करने के बाद जो सुख की अनुभूति होती है तब अपने आप में एक चेतना बनती है| 

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