चिंतन विचार प्रक्रियाएं हैं जिसके माध्यम से हम अपने अंदर उतर सकते हैं प्रवेश कर सकते हैं परंतु प्रश्न यह उठता है कि हम बुद्धि पक्ष को अपने
ऊपर हावी ना होने दें इसके लिए यह जरूरी है हम समाधि के माध्यम से बुद्धि पक्ष को कमजोर करें जिससे कि श्रद्धा पक्ष को आगे बढ़ाया जा
सके,क्योंकि जहां श्रद्धा है वहां सुख है, संतोष है ईश्वर अपने आप में कोई हवा में बंद कर नहीं आता एक आकृति उसे लेनी पड़ती है वह चाहे राम
हो या फिर कृष्णा चाहे इसा मसीह के रूप में पैदा हुए हो हाथ पाव नाक कान आदि वैसे ही बनाने पड़ते हैं जैसे मनुष्य के होते हैं लेकिन उनके
अंदर एक क्रियमाण जाग्रत होता है उनके अन्दर एक दैदीप्यता,एक आभा एक चेतना शक्ति होती है जिसके कारण वह अनेक कार्यो को करते
है औरअपना रास्ता खुद बनाते है ., अपने आप को नयी पहचान देते है | क्या ऐसी चेतना हमारे और आपके अन्दर जाग्रत नहीं हो सकती?
निश्चित हो सकती है मगर हमने कभी उस रस्ते पर चलने का सोचा ही नहीं वास्तव में इसीलिए हम पीछे रह जाते है सद का मतलब होता है
पूर्णता की ओर अग्रसर होने की क्रिया और प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में अपूर्ण है, आप अपूर्ण हैं इसलिए मृत्यु की ओर चले जाते हैं पूर्ण आदमी तो
मृत्यु की ओर जा ही नहीं सकता यदि शून्य में शून्य जोड़ दें या घटा दें तब दोनों ही स्थितियों में शून्य बचेगा और पूर्ण भी अपने आप में शून्य
हैं पूर्ण मिट नहीं सकता और जो मिट जाता है ,वह शमशान की ओर चला जाता है वह पूर्ण नहीं बन सकता इसलिए जो उस रास्ते पर नहीं जाना
चाहता है मगर कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो बीच में रुक जाते हैं और रूक इसलिए जाते हैं कि उन्हें बीच में कोई संत महात्मा महापुरुष मिल जाते हैं
मथुरा और वृंदावन में गुरु बहुत मिल जाएंगे तुम एक गुरु ढूंढोगे तो तुम्हें 10 गुरु मिल जाएंगे तुम्हें गुरु तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन सद्गुरु
मिलना बहुत कठिन काम है क्योंकि सद्गुरु एक धधकती हुई आग है, एक पूर्ण चेतना है, समस्त शक्तिपुंज है, वह काल को भी पूर्ण रूप से जानता है
वह भूतकाल को भी देख सकता है और भविष्य को भी देख सकता है उसके सामने दोनों स्थितियां होती हैं जिनका कि वह आकलन करके हमें मृत्यु
से अमृत्यु की ओर आगे बढ़ा देता है फिर मृत्यु हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती यह गुरु और सद्गुरु में बहुत बड़ा डिफरेंस है क्योंकि गुरु ध्यान
धारणा और समाधि की पूर्ण अवस्था को धारण किए हुए होता है इसलिए अगर हमें वास्तव में बदलना है तो योग्य साधु संत गुरु की शरण में जाना
चाहिए वहां से हमें वह शक्ति प्राप्त होती है जिससे हम अपने आप को निश्चित रूप से बदल सकते हैं |
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